Followers

Followers

Tuesday 19 December 2017

अनुच्छेद :- 21 प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता (Life and Personal Liberty)

भारतीय संविधान में अनु• 21 सबसे प्रमुख अधिकार है जो मनुष्य के जीवन की गारंटी के साथ - साथ सम्मानजनक जीवन की भी गारंटी देता है।

अनु• 21 के अनुसार  "किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जायेगा अन्यथा नहीँ।" इसमें मानवाधिकारों को सम्मिलित किया गया है और राज्य से ऐसी आशा की गयी है कि वह न केवल उसकी रक्षा करेगा बल्कि उसका विकास और विस्तार भी करेगा।
         आज के समय में यह अधिकार अपने अन्दर तमाम मानवाधिकारों को सम्मिलित करता जा रहा है। यहाँ तक कि कुछ नीति निर्देशक तत्व जैसे समान कार्य के लिए समान मजदूरी तथा शिक्षा का अधिकार को भी अनुच्छेद 21 शामिल कर लिया गया है। स्वच्छ पर्यावरण जो मनुष्य के स्वस्थ जीवन के लिए आवश्यक है, वह भी अनुच्छेद 21 में शामिल है।
         यह अनुच्छेद न केवल भारतीय नागरिकों बल्कि सभी व्यक्तियों अर्थात विदेशियों को भी संरक्षण प्रदान करता है।

         'विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया' की जो बात इसमें कही गई है उस पर सबसे पहले ए• के• गोपालन  बनाम मद्रास राज्य में आक्षेप किया गया। न्यायालय का मत था कि अनु• 21 केवल कार्यपालिका के कार्यों से सरंक्षण प्रदान करता है नाकि विधान मंडल के। इसका अर्थ यह हुआ कि विधानमंडल कोई भी विधि बनाकर किसी व्यक्ति को उसके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से वंचित कर सकता है।

सरकार का पक्ष था कि न्यायालय विधायकों द्वारा निर्मित विधि और विधि द्वारा स्थापित की गई प्रक्रिया की युक्तियुक्तता की जाँच अनु•21 के अंतर्गत नहीं कर सकता।

गोपालन का तर्क था कि अनु• 21के अंतर्गत न्यायालय किसी भी विधि की वैधता तथा युक्तियुक्तता की जाँच कर सकता है। दूसरा तर्क था कि निवारक निरोध से उसके अनुच्छेद 19(1) घ एवं 19(5) के अधिकार भी प्रभावित होते हैं। इसलिए इसकी युक्तियुक्तता की जाँच अनु• 19(1)घ एवं 19(5) के संदर्भ में भी होनी चाहिए। तीसरी बात यह थी कि भारत में लागू की गई विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया में अमेरिकी संविधान द्वारा प्रदत्त विधि की सम्यक प्रक्रिया का सिद्धान्त भी समाहित है।

     लेकिन न्यायालय ने गोपालन के तर्कों को अमान्य कर दिया और कहा कि प्रयुक्त विधि शब्द से प्राकृतिक न्याय का बोध नहीँ होता। न्यायालय ने कहा कि स्वतंत्रता एक विस्तृत अर्थ वाला शब्द है परन्तु अनु• 21 ने इसके पहले दैहिक जोड़कर इसको सीमित कर दिया है। इसका मतलब शारीरिक स्वतंत्रता से ही है जो यह बताती है कि बिना विधिक प्रावधान के किसी व्यक्ति को कारावास नहीँ भेजा सकता।
जबकि अनु• 19 में किसी भी व्यक्ति को भारत घूमने से केवल अनु• 19(5) में बताये गए निर्बन्धन के आधार पर ही रोका जा सकता है। अतः अनु• 19 और 21 दोनों अलग - अलग प्रावधान हैं दोनों को मिलाया नहीं जा सकता। अनु•21 के अधीन दैहिक स्वतंत्रता को वंचित करने वाली विधि की विधिमान्यता को इस आधार पर चुनौती नहीँ दी जा सकती कि वह अनु• 19(5) के अधीन अयुक्तियुक्त निर्बन्धन लगाती है।

          अपने बाद के निर्णयों में सर्वोच्च न्यायालय ने विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का विस्तृत अर्थ लगाया है। मेनका गांधी बनाम भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने ए• के• गोपालन के मामले में दिए निर्णय को उलट दिया और दैहिक स्वतंत्रता को व्यापक अर्थ प्रदान किया और कहा कि अनुच्छेद 21 कार्यपालिका और विधायिका दोनों के विरुद्ध सरक्षण प्रदान करता है। अनुच्छेद 21 में प्रयुक्त प्रक्रिया का अर्थ कोई प्रक्रिया नहीँ है बल्कि ऐसी प्रक्रिया है जो ऋजु, न्यायपूर्ण व् युक्तियुक्त है। किसी व्यक्ति को उसके मूलाधिकार से वंचित करने के लिए प्रक्रिया युक्तियुक्त होनी चाहिए। प्रक्रिया युक्तियुक्त तभी मानी जायेगी जब नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्त का पालन किया गया होगा। युक्तियुक्तता का सिद्धान्त अनु• 14 का प्रमुख तत्व है। केवल विधि का होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि न्याय का होना भी आवश्यक है।
न्यायाधीश भगवती ने कहा कि  "दैहिक स्वतंत्रता शब्दावली अत्यन्त व्यापक अर्थ वाली है और इसके अंतर्गत ऐसे बहुत से अधिकार सम्मिलित हैं जिनसे व्यक्ति की दैहिक स्वतंत्रता का गठन होता है। यह आवश्यक नहीँ है कि किसी मूलाधिकार का उल्लेख किसी अनुच्छेद में किया जाय तभी वह मूल अधिकार होगा।
            अगर कोई अधिकार किसी मूल अधिकार के प्रयोग में आवश्यक है तो भी वह मूल अधिकार होगा। भले ही उसका जिक्र भाग - 03  में न किया गया हो। इसके बाद ही कई अधिकार अनुच्छेद 21 में शामिल होते चले गए जैसे गोपनीयता का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, जीविकोपार्जन का अधिकार, स्वच्छता का अधिकार, चिकित्सा का अधिकार, एकान्तता का अधिकार, विधिक सहायता का अधिकार आदि।

8 comments:

Unknown said...

Good

Unknown said...

Bahut mast hai sir

Unknown said...

Nice

Unknown said...

Great sir
Aise aur bhi aritcle k bare me samjhaiye

Unknown said...

Mastttt sir

Unknown said...

Bhut Achha H Sair
Good Morning

Unknown said...

Unknown said...

Good article sir