भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ और कृत्य
अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। इस प्रकार भारत का राष्ट्रपति संघ की "कार्यपालिका शक्ति" का प्रधान होगा।
अनुच्छेद 73 इस कार्यपालिका शक्ति के विस्तारित क्षेत्र को चिन्हित करता है अर्थात संघ या संसद के समस्त विधायन क्षेत्राधिकार पर राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्ति विस्तृत होती है। कार्यपालिका का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है।
1. प्रशासनिक शक्ति :- संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं और राष्ट्रपति सभी कार्य प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद की परामर्श से करता है। किंतु संघ के सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से होते हैं। राष्ट्रपति को संविधान के अनुसार कोई भी विवेकाधिकार प्राप्त नहीँ है। किंतु प्रधानमंत्री की नियुक्ति और त्यागपत्र दिए हुए मंत्रिपरिषद की स्थिति में कुछ विवेकीय कार्य की शक्तियाँ प्राप्त हैं। प्रशासनिक कार्य के अंतर्गत राष्ट्रपति संविधान द्वारा उपबन्धित पदाधिकारियों, आयोगों, परिषदों की नियुक्ति एवं गठन तथा कुछ अन्य मामलों में नियम बनाने की शक्तियां प्राप्त हैं।
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है। मंत्रिपरिषद की सलाह पर वह सर्वोच्च न्यायालय व् राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्य के राज्यपालों, भारत के महान्यायवादी, नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करता है तथा वह वित्त आयोग, निर्वाचन आयोग, संघ एवं संयुक्त लोक सेवा आयोग, अल्पसंख्यक आयोग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग, पिछड़ावर्ग आयोग, राजभाषा आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और अंतर्राज्यीय परिषद का गठन करता है।
किंतु सभी पदाधिकारियों एवं आयोगों के अध्यक्षों या सदस्यों को स्वयं या संसद के साथ मिलकर (संसद द्वारा प्रस्ताव पारित करने पर) राष्ट्रपति उन्हें पदच्युत करने की शक्ति भी रखता है।
42वें संशोधन 1976 द्वारा उक्त सभी नियुक्तियों और पदच्युति में राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद की राय के अनुसार कार्य करना बाध्य बना दिया गया था। किंतु 44वें संशोधन 1978 द्वारा अनुच्छेद 74 खण्ड 1 में परंतुक जोड़ा गया है जो इस प्रकार है :-
"परन्तु राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।"
2. न्यायिक शक्तियाँ :- भारत के राष्ट्रपति को अपराध के लिए दोषसिद्ध व्यक्तियों को क्षमादान, प्रतिलंबन आदि की शक्ति प्राप्त है।
3. सैन्य शक्तियाँ :- अनुच्छेद 53 के अनुसार राक्षबलों का सर्वोत्तम समादेश राष्ट्रपति में निहित है। वह रक्षाबलों के प्रमुखों की नियुक्ति करता है। उसे युद्ध और शान्ति की घोषणा करने की भी शक्ति प्राप्त है परन्तु यह सभी कार्य संसद द्वारा निर्मित विधि के अनुसार संचालित होगा। संसद विधि द्वारा इन शक्तियों के प्रयोग को विनियमित या नियंत्रित कर सकती है।
4. राजनयिक शक्ति :- राजनयिक शक्ति एक व्यापक विषय है। कई बार इसे विदेश कार्य शक्ति के समानार्थी समझा जाता है जिसमें वे सभी विषय आते हैं जो संघ को किसी विदेशी राज्य के सम्पर्क में लाते हैं। इन विषयों के बारे में और साथ ही संधियाँ करने और उन्हें लागू करने के बारे में विधायी शक्ति संसद में है। संसद के अधीन रहते हुए अन्य देशों से संधि और करार करने का कार्य राष्ट्रपति को मंत्रियों की सलाह के अनुसार करना होगा।
5. विधायी एवं वित्तीय शक्तियाँ :- अनुच्छेद 79 के अनुसार राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह से संसद से सम्बंधित निम्नलिखित कार्य कर सकता है :-
(i) वह संसद के दोनों सदनों को आहूत करने, उसका सत्रावसान और लोकसभा को विघटित करने की शक्ति रखता है।
(ii) सामान्य विधेयकों पर गतिरोध की दशा में अनुच्छेद 108 के अंतर्गत संयुक्त बैठक बुलाता है। जो अब तक तीन बार बुलाई जा चुकी है :-
(1) दहेज़ अधिनियम 1961,
(2) बैंकिंग सेवा अधिनियम 1978,
(3) पोटा (आतंकवादी निरोधक) अधिनियम 2002
iii. वह संसद के एक सदन या दोनों सदनों में अभिभाषण करता है और इस प्रयोजन हेतु सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकता है। वह किसी लम्बित विधेयक या अन्य विषय के सम्बन्ध में किसी सदन को सन्देश भेजकर शीघ्रतापूर्वक कार्य करने की अपेक्षा कर सकता है। (अनुच्छेद 86)
iv. वह संयुक्त अधिवेशन में विशेष अभिभाषण कर सकता है। यह प्रत्येक वर्ष के आरम्भ के प्रथम सत्र में होता है। इसमें शासन की नीतियों का खुलासा होता है। (अनुच्छेद 87)
v. वह राज्यसभा में 12 ऐसे सदस्यों को मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक विषयों का विशेष ज्ञान है।
वह लोक सभा में दो एंग्लो इण्डियन सदस्यों को भी मनोनीत कर सकता है।
(अनुच्छेद 80 (1) अनुच्छेद 331)
vi. राष्ट्रपति की कुछ प्रतिवेदन और कथनों को संसद के समक्ष रखने की शक्ति :-
(1) वार्षिक वित्तीय विवरण-बजट और अनुपूरक विवरण।
(2) वित्त आयोग की सिफारिश और उसकी कार्यवाही रिपोर्ट अनु• 281 में दी गई है।
(3) संघ लोकसेवा आयोग के प्रतिवेदन एवं जहाँ आयोग की सलाह स्वीकार नहीँ की गई है वहाँ उसके कारण। (अनु•323)
(4) SC/ST के विशेष अधिकारी का प्रतिवेदन अनु• 338 और पिछड़े वर्ग आयोग का प्रतिवेदन अनु• 340 में दिया गया है।
vii. विधायन के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी
कुछ ऐसे विषय हैं जिस पर विधि बनाने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी अपेक्षित है :-
(1) किसी राज्य के क्षेत्र, सीमा या नाम में परिवर्तन सम्बन्धी विधेयक। (अनु• 3)
(2) धन एवं वित्त विधेयक। [अनु• 117 (1) ]
(3) जिस विधेयक से भारत की संचित निधि से धन व्यय करने का प्रयोजन हो।
[अनु• 117 (3)]
(4) ऐसा विधेयक जो ऐसे कराधान को प्रभावित करता है जिनसे राज्य हितबद्ध हैं या उन सिद्धांतों को प्रभावित करता है जिनसे राज्य को धन का वितरण किया जाता है।
[अनु• 274 (1)]
(5) व्यापार की स्वतंत्रता पर निर्बन्धन अधिरोपित करने वाले राज्य विधेयक।
(अनुच्छेद 304 का परंतुक)
vii. उच्च न्यायालय की अधिकारिता प्रभावित करने वाला विधेयक, किसी राज्य के अन्दर या दूसरे राज्यों के साथ व्यापार आदि पर प्रतिबन्ध लगाने वाला विधेयक और वित्तीय आपात के लागू होने की दशा में राज्य के सभी धन विधेयकों को।
विधेयकों को अनुमति देने सम्बन्धी शक्ति को राष्ट्रपति की वीटो शक्ति कहा जाता है। संसद द्वारा पारित विधेयकों को जब राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तावित किया जायेगा तो वह चार प्रकार से कार्य करता है :-
(1) विधेयक की अनुमति देता है।
(2) अनुमति रोक लेता है।
(3) पुनर्विचार के लिए संसद को वापस लौटाता है।
(4) सुविधानुसार शीघ्रता से अनुमति प्रदान करता है।
उक्त शब्दावलियाँ अनुमति देने से इन्कार करने, संसद से पुनर्विचार की अपेक्षा करने तथा सुविधानुसार अनुमति देने से क्रमशः अत्यंतिक वीटो, निलम्बनकारी वीटो तथा जेबी वीटो की शक्तियाँ उद्भूत होती हैं।
अत्यंतिक वीटो का प्रयोग अब तक दो बार किया गया है :-
(1) पेप्सू विनियोग विधेयक, 1954
(2) संसद सदस्य वेतन भत्ता और पेंशन विधेयक, 1991 ।
निलम्बनकारी वीटो का प्रयोग कभी नहीं किया गया है जबकि जेबी वीटो का प्रयोग एक बार भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक, 1986 में किया गया था।
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