Friday 19 January 2018

भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति व् आपात शक्तियाँ

राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति :- लगभग सभी देशों के संविधान कार्यपालिका के प्रधान को ऐसे व्यक्तियों को क्षमादान करने की शक्ति देते हैं जिनका किसी अपराध के लिए विचारण और दोषसिद्धि हुई है। कार्यपालिका के प्रधान को यह शक्ति इसलिए प्रदान की गई है कि यदि कोई न्यायिक भूल हो गई है तो उसमें सुधार किया जा सके। क्योंकि कोई भी मानवीय कार्य पूर्णतः दोषमुक्त नहीं हो सकता। इसलिये यह शक्ति प्रदान की गई है।

केहर सिंह  बनाम  भारत संघ, ए• आई• आर• 1998 एस• सी• 653 के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने क्षमादान की शक्ति के सम्बन्ध में निम्नलिखित सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं :-

1. राष्ट्रपति से क्षमादान के लिए जो व्यक्ति आवेदन करता है उसे राष्ट्रपति के समक्ष मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है।

2. शक्ति का प्रयोग राष्ट्रपति के विवेक के अधीन है।

3. शक्ति का प्रयोग केंद्रीय सरकार की सलाह पर किया जायेगा।

4. राष्ट्रपति न्यायालय के निर्णय पर विचार करने के उपरान्त उससे अलग मत का हो सकता है।

5. राष्ट्रपति के निर्णय का पुनर्विलोकन न्यायालय मारूम  बनाम  भारत संघ के वाद में बताई गई सीमा के अन्दर ही कर सकता है। इसमें न्यायालय ने कहा है कि न्यायालय वहीं हस्तक्षेप कर सकेगा जहाँ राष्ट्रपति का निर्णय अनुच्छेद 72 से असंगत, तर्कहीन, मनमाना, विभेदकारी असद्भावी है।

क्षमादान की शक्ति मेँ राष्ट्रपति को अनेक प्रकार की शक्तियाँ प्राप्त हैं जिनका अलग महत्व और अलग विधिक परिणाम है। जैसे कि क्षमा, प्रविलंबन, विराम, निलंबन, परिहार और लघुकरण।
क्षमा :- दंडादेश और दोषसिद्धि दोनों से मुक्ति मिलना।
प्रविलंबन :- क्षमा या लघुकरण की कार्यवाही के लम्बित रहने के दौरान दण्ड के प्रारम्भ की अवधि को आगे बढ़ाना।
विराम :- कुछ दंड भोग लेने के बाद शेष दण्ड को आगे बढ़ाना जैसे कि किसी बीमारी या स्त्री के गर्भवती होने की दशा में।
परिहार :- दंडादेश की प्रकृति को परिवर्तित किये बिना उसे घटाता है। जैसे एक वर्ष के कारावास को परिहार करके छः मास का किया जा सकता है।
निलंबन :- दंडादेश को कुछ समय के लिये रोक देना।
लघुकरण :- दंडादेशों में से प्रत्येक का उसके ठीक बाद में आने वाले दंडादेश द्वारा लघुकरण किया जा सकता है। जैसे मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास, कठोर कारावास, साधारण कारावास, जुर्माना।

राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्तियों की तुलना

1. राष्ट्रपति को सेना न्यायालय द्वारा दिए गए दंड या दंडादेश के सम्बन्ध में क्षमादान, प्रविलंबन, विराम, निलंबन, परिहार व् लघुकरण की शक्ति प्राप्त है जबकि राज्यपाल को ऐसी कोई शक्ति प्राप्त नहीँ है।

2. जहाँ दंड या दंडादेश ऐसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए है जिस पर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है वहां राष्ट्रपति को उपरोक्त शक्तियाँ प्राप्त हैं जबकि राज्यपाल को ऐसी विधि के विरूद्ध अपराध के सम्बन्ध में जिस पर राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है मृत्यु दंडादेश को छोड़कर राष्ट्रपति के समान शक्तियाँ प्राप्त हैं।

3. राज्यपाल मृत्युदंड को क्षमा नहीँ कर सकता है किंतु मृत्युदंड के प्रविलंबन, परिहार या लघुकरण के मामले में उसकी शक्ति राष्ट्रपति के समान हैं।

                 आपात शक्तियाँ

कुछ असाधारण परिस्थितियों का सामना करने के लिए भारत के राष्ट्रपति को निम्नलिखित तीन शक्तियाँ प्रदान की गई हैं :-

1. अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति को युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा पर संकट होने की स्थिति में 'आपात की उदघोषणा' करने की शक्ति प्राप्त है।

2. अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राष्ट्रपति को राज्य में संवैधानिक तंत्र विफल होने की उदघोषणा करने की शक्ति प्राप्त है।

3. अनुच्छेद 360 के अंतर्गत राष्ट्रपति को भारत या भारत के किसी भाग में वित्तीय आपात की उदघोषणा करने की शक्ति प्राप्त है।

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