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Monday 22 January 2018

भारत के उपराष्ट्रपति की पदावधि, कार्य एवं शक्तियाँ

            उपराष्ट्रपति की पदावधि

अनुच्छेद 67 के अनुसार उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष तक पद धारण करेगा और अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद पर बना रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीँ कर लेता है।

  कार्यकाल पूर्ण होने से पहले पद छोड़ना

उपराष्ट्रपति पद पर पदासीन व्यक्ति  निम्नलिखित परिस्थितियों में कार्यकाल पूरा होने से पहले अपना पद छोड़ सकता है :-

1. उपराष्ट्रपति अपना त्याग पत्र रष्ट्रपति को देकर पद त्याग सकता है।

2. संसद द्वारा प्रस्ताव करके हटाये जाने पर अर्थात ऐसे संकल्प का प्रस्ताव जिसे चौदह दिन की पूर्व सूचना पर राज्यसभा ने अपने तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित किया हो और लोकसभा उससे सहमत हो।

उपराष्ट्रपति के लिए संसद द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया संचालित नहीँ की जाती है और न ही कोई जाँच की जाती है। उसे संविधान के उल्लंघन या अन्य किसी भी आधार पर हटाये जाने का आधार लिया जा सकता है।

  उपराष्ट्रपति के खाली पद को भरा जाना

उपराष्ट्रपति के पद की अवधि पूरी होने से पहले ही उपराष्ट्रपति का निर्वाचन करा लिया जाता है। किन्तु उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पद त्याग, पद से हटाए जाने या अन्य कारणों से खाली हुए पद को भरने के लिए यथाशीघ्र निर्वाचन कराया जायेगा। संविधान में कार्यकारी उपराष्ट्रपति का कोई प्रावधान नहीं है। प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की अवधि के लिए पद ग्रहण करता है। उपराष्ट्रपति के न होने की स्थिति में राज्यसभा में सभापति के कार्यों का निर्वहन उपसभापति करता है।

            उपराष्ट्रपति का वेतन, भत्ता

अनुच्छेद 64 के अनुसार उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है।

अनुच्छेद 97 के अनुसार अनुसूची दो के अनुसार राज्यसभा के सभापति को देय वेतन और भत्ते का हकदार होगा। इस वेतन और भत्ते में उसके कार्यकाल के दौरान कोई कमी नहीं की जायेगी सिवाय उस समय के जब वह कार्यकारी राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो।

जब वह राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा होता है तो उसे राष्ट्रपति को देय सभी उपलब्धियां और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं।

उपराष्ट्रपति के संवैधानिक कार्य और       शक्तियाँ :- उपराष्ट्रपति के कार्य और शक्तियाँ निम्नलिखित हैं :-

1. कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य :- जब राष्ट्रपति का पद मृत्यु, पद त्याग व् महाभियोग प्रक्रिया द्वारा हटाये जाने पर या अन्य कारणों से खाली होता है तब उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है।

2. राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य :- राज्यसभा का पदेन सभापति होने के कारण उपराष्ट्रपति सभापति को प्राप्त सभी अधिकारों व् शक्तियों का प्रयोग करता है। राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करता है। सदन में अनुशासन बनाये रखना, भाषण की आज्ञा प्रदान करना, असंसदीय भाषा के प्रयोग पर नियंत्रण तथा विधेयकों पर निर्णय करते समय समान मत होने पर निर्णायक मत देना। राज्यसभा द्वारा पारित विधेयकों पर हस्ताक्षर करता है। वह राष्ट्रपति के त्याग पत्र दिए जाने की सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है और राज्यसभा में प्रस्तुत करता है।

अनुच्छेद 71 के अनुसार राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बंधित विवाद की जाँच और उस पर निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जायेगा।

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