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Sunday 24 December 2017

धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26 )

भारतीय संविधान के अंतर्गत सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। उस स्वतंत्रता पर भारतीय संविधान द्वारा कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं। जिनके बारे में हम अनुच्छेद 25 में पढ़ चुके हैं। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को और अधिक विस्तृत करते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 में धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता का अधिकार के बारे वर्णित किया गया है।

    
      धार्मिक कार्यों के प्रबन्ध की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 26 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के मानने, आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार तो है ही प्रत्येक धार्मिक सम्प्रदाय या उसके विभाग को निम्न अधिकार प्रदान करता है :-

i. धार्मिक या पूर्त उद्देश्यों के लिए संस्थाओं की स्थापना और उसका पोषण का,

ii. अपने धर्म से सम्बंधित कार्यों के प्रबंध का,

iii. चल या अचल संपत्ति का अर्जन और उसका स्वामित्व प्राप्त करने का और

iv. ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का।

उक्त स्वतंत्रताओं पर लोक व्यवस्था, सदाचार तथा स्वास्थ्य के हित में प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं।

अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों एवं उनके अनुभवों तक सीमित है अर्थात यह धर्म की सामूहिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। सम्प्रदाय और उपसम्प्रदाय सभी धर्मों में पाए जाते हैं।

अनुच्छेद 26 के अंतर्गत जिन विषयों के आधार पर संसद को विधि निर्मित करने की शक्ति प्रदान की गई है। उसके अंतर्गत वह उन समस्त कार्यों या प्रबन्ध तंत्रीय व्यवस्था विनियमित करने का उपबन्ध कर सकती है।

धार्मिक अनुभाग  अर्थात   धार्मिक संप्रदाय का अर्थ

धार्मिक अनुभाग अर्थात धार्मिक सम्प्रदाय का अर्थ ऐसे व्यक्तियों के समूह से है जो एक विशिष्ट नाम के तहत संगठित होते हैं तथा जो सामान्यतया एक धार्मिक सम्प्रदाय या संस्था होती है। जिसका किसी धर्म विशेष में विश्वास होता है।

धार्मिक संस्थाओं से सम्बंधित सम्पत्ति का प्रबंधन कार्य राज्य विनियमित कर सकता है किंतु संपत्ति के प्रबन्ध का अधिकार उस सम्प्रदाय विशेष के पास ही रहेगा। राज्य यह अधिकार उससे लेकर किसी अन्य व्यक्ति में निहित नहीं कर सकता है।

एस• पी• मित्तल  बनाम भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अरबिन्दो सोसाइटी एवं इंटरनेशनल टाउनशिप ओरविले धार्मिक संस्था नहीँ है। श्री अरबिन्दो की शिक्षाएं सिर्फ दर्शन हैं न कि धर्म।

अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय के लिए कोई कर देने के लिये बाध्य नहीं किया जायेगा।

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