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Tuesday 26 December 2017

शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर प्रतिबन्ध (अनुच्छेद 28)

भारतीय संविधान के अधीन भारत एक पंथनिरपेक्ष राज्य है अर्थात ऐसा राज्य जिसका कोई धर्म न हो और सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखता हो। पंथनिरपेक्ष राज्य इस विचार पर आधारित होता है कि राज्य का विषय केवल व्यक्ति और व्यक्ति के बीच सम्बन्ध से है, व्यक्ति और ईश्वर के बीच सम्बन्ध से नहीँ है। यह व्यक्ति के अन्तःकरण का विषय है।

अनुच्छेद 28 :- ऐसी तीन प्रकार की परिस्थितियों का उल्लेख करता है जब किसी शिक्षण संस्था में धार्मिक शिक्षा प्रतिबंधित रहेगी :-

(1) राज्य निधि से पूर्णतः पोषित शिक्षण संस्था :- ऐसी शिक्षण संस्था जिसकी स्थापना भी राज्य द्वारा की गयी हो और उसका प्रशासन भी राज्य के हाथ में हो, उसे राज्य निधि से पूर्णतः पोषित संस्था कहते हैं। ऐसी शिक्षण संस्थाओं में पूर्ण रूप से धार्मिक शिक्षा का प्रतिबंधित किया गया है।

(2) किसी ट्रस्ट या प्रबंधतंत्र (विन्यास या न्यास) के अधीन स्थापित किन्तु राज्य द्वारा प्रशासित शिक्षण संस्था :- यदि कोई ऐसी शिक्षण संस्था जो किसी ऐसे न्यास या विन्यास के अधीन स्थापित की गई है जिसके अनुसार धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है तो खण्ड 01 का प्रतिबन्ध ऐसी शिक्षा संस्था के संबंध में लागू नहीँ होगा अर्थात उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबन्ध नहीँ होगा।

(3) राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या राज्य निधि सहायता पाने वाली शिक्षण संस्था :- राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या अनुदान प्राप्त किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश लेने वाले किसी भी व्यक्ति को इस बात के लिए बाध्य नहीँ किया जायेगा कि वह उस संस्था द्वारा प्रदान की जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग ले या उसमें की जाने वाली धार्मिक उपासना में भाग ले, जब तक कि इसके लिए उसकी स्वयं की मर्जी न हो। यदि वह अवयस्क है तो जब तक उसका संरक्षक इसके लिए अपनी सहमति नहीँ देता है।

अनुच्छेद 28 केवल धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करता है, नैतिक शिक्षा या धर्म के शैक्षणिक अध्ययन को प्रतिबंधित नहीँ करता।

एस• आर• बोम्मई  बनाम  भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि  पंथनिरपेक्षता संविधान का आधारभूत ढाँचा है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार सभी व्यक्तियों को प्राप्त है चाहे वे भारतीय नागरिक हों या विदेशी।

अरुणा राय  बनाम भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के नए पाठ्यक्रम को संवैधानिक माना तथा कहा कि यह न तो अनुच्छेद 28 का उल्लंघन करता है और न ही पंथनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।

अनुच्छेद 28 के उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट है कि किन दशाओं में धार्मिक शिक्षा को शिक्षण संस्थाओं में प्रतिबंधित किया गया है।

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