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Thursday 28 December 2017

संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (cultural and Educational Rights) अनुच्छेद 29 - 30

भारतीय संविधान में समस्त नागरिकों को अपनी संस्कृति एवं लिपि को सुरक्षित रखने के लिए विशेष उपबन्ध दिए गए हैं। यही अधिकार अल्पसंख्यक वर्गों को भी भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त किये गये हैं।

अनुच्छेद 29 (1) :- "भारत के राज्य क्षेत्र में या उसके किसी भाग में निवास करने वाले नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है उसे बनाये रखने का अधिकार एवं संरक्षण देता है।"

अनुच्छेद 29 (2) :- "राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति और भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जायेगा।"

अनुच्छेद 29 के खण्ड 2 में दिए गए अधिकार भारत में निवास करने वाले समस्त नागरिकों को प्राप्त हैं। चाहे वह नागरिक अल्पसंख्यक वर्ग का हो या बहुसंख्यक वर्ग का हो। इसमें सभी नागरिकों को राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता प्राप्त  शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश का अधिकार प्रदान किया गया है।

चम्पकम दोराई राजन  बनाम  मद्रास (1951) के वाद में उच्चतम न्यायालय ने मद्रास राज्य द्वारा निर्मित उस विधि को अनुच्छेद खण्ड 2 में प्रदत्त मूलाधिकार के आधार पर अवैध घोषित कर दिया था जिसमें राज्य के कोष से चलाये जाने वाले मेडिकल कॉलेजों तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में विभिन्न धर्मों एवं जातियों के लोगों को उनके पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया गया था। न्यायालय ने कहा था कि उक्त विधि में आरक्षण के वर्गीकरण का आधार धर्म और जाति थी जबकि अनुच्छेद 29 खण्ड 2 केवल धर्म, मूलवंश, जाति और भाषा के आधार पर वर्गीकरण की अनुमति नहीँ देता है। इसी निर्णय के प्रभाव को समाप्त करने के लिए संविधान में प्रथम संशोधन, 1951 द्वारा अनुच्छेद 15 खण्ड 4 को अंत: स्थापित करना पड़ा।

अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा चलाये जाने वाले स्कूल यदि राज्यनिधि से सहायता प्राप्त करते हैं तो व्ह दूसरे समुदाय के बालकों को प्रवेश देने से इन्कार नहीं कर सकते परंतु अल्पसंख्यक वर्ग द्वारा अपने वर्ग के पक्ष में 50 प्रतिशत तक स्थान आरक्षित किया जा सकता है

अनुच्छेद 29 खण्ड (3) :- केवल धर्म, मूलवंश, जाति या भाषा के आधार पर शिक्षण संस्थओं में प्रवेश सम्बंधित शर्तों का निषेध करता है, अन्य के आधार पर नहीँ।

प्रश्न यह है कि क्या अन्य आधारों जैसे लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद किया जाना अवैध होगा या नहीं।

किन्तु ऐसा भी विभेद किया जाना अनुच्छेद 29 (2) से प्रतिबंधित न होने पर भी अन्य उपबन्ध जैसे अनुच्छेद 15 (1) के आधार प्रतिबंधित हो जायेगा। जिसमें लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद किया जाना प्रतिबंधित है।

           अनुच्छेद 29 का अपवाद

अनुच्छेद 29 का अपवाद अनुच्छेद 15 (4) है। अनुच्छेद 15(4) के उपबन्ध को लागू करते समय यदि अनुच्छेद 29(2) में दिए गए अधिकार प्रभावित होते हैं तो मूलाधिकार का उल्लंघन नहीँ माना जायेगा।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 तथा 30 में संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी मूलाधिकारों का प्रावधान किया गया है।

अनुच्छेद 29 के अंतर्गत दिए गये अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त हैं। इस अनुच्छेद का उद्देश्य अल्पसंख्यक वर्ग के हितों को संरक्षित करना है।

अहमदाबाद सैंट ज़ेवियर कॉलेज सोसाइटी  बनाम  गुजरात राज्य के वाद में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अनुच्छेद 29 (2) का लाभ केवल अल्पसंख्यक वर्ग को ही नहीं बल्कि बहुसंख्यक वर्ग को भी प्राप्त है।

           अल्पसंख्यक का अर्थ

अल्पसंख्यक को भारतीय संविधान में परिभाषित नहीँ किया गया है। यदि अल्पसंख्यक शब्द का प्रयोग अनुच्छेद 29 व् 30 के अर्थ में लिया जाये तो यह कहा जायेगा कि यदि किसी वर्ग की जनसंख्या राज्य की सम्पूर्ण आबादी की 50 प्रतिशत से कम होती है तो उस जनसंख्या को अल्पसंख्यक कहा जायेगा।

अनुच्छेद 29 में सभी नागरिकों विशेषत: (भाषिक और धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग) को अधिकार दिए गए हैं।

जगदेव सिंह  बनाम प्रताप सिंह, 1965 के वाद के अनुसार, भाषा के आरक्षण के लिये आंदोलन का अधिकार भी अनु• 29 के अंतर्गत सम्मिलित है।

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