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Wednesday 3 January 2018

संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) अनुच्छेद :- 32

भारतीय संविधान में दिए गए मूल अधिकारों के अनुपालन को लागू करने की न्यायपालिका की शक्ति, न्यायालयों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता पर ही नहीं इस बात पर भी निर्भर करती है कि कार्यपालिका या अन्य प्राधिकारियों से अनुपालन कराने के लिए उसके पास कितने प्रभावी उपकरण हैं। विधि पद्धति में ये साधन हैं। रिट या आदेशिकाएं जैसे बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेरण और अधिकारपृच्छा।

संविधान के अनुसार उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 32 अंतर्गत और उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट निकलने की शक्ति प्रदान की गई है।

अनुच्छेद 32 तो संविधान के भवन की नींव का पत्थर है। इस अनुच्छेद पर टिप्पणी करते हुए डॉ• अम्बेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि  "यदि मुझसे कहा जाये कि मैं संविधान के किस अनुच्छेद को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानता हूँ, ऐसा अनुच्छेद जिसके बिना संविधान व्यर्थ हो जायेगा तो मैं किसी और अनुच्छेद को नहीँ इसी को इंगित करूँगा। यह संविधान की आत्मा है, उसका हृदय है।"

अनुच्छेद 32 (1) :- यह समुचित कार्यवाहियों के माध्यम से मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रचलित करने के अधिकार की गारण्टी देता है। अर्थात उच्चतम न्यायालय में समस्त कार्यवाहियों या प्रक्रियाओं के माध्यम से नहीँ, अपितु केवल समुचित कार्यवाहियों या प्रक्रियाओं के माध्यम से लाया जा सकता है। मूल अधिकारों के प्रवर्तन की शक्ति अत्यन्त व्यापक है। उच्चतम न्यायालय इस उद्देश्य से कोई भी प्रक्रिया अपनाने के लिए स्वतंत्र है। वह बिना प्रतिवादी की उपस्थिति के भी सुनवाई कर सकता है। इसी अधिकार का प्रयोग कर जस्टिस भगवती ने लोकहित वाद का प्रचलन किया।

अनुच्छेद 32 (2) :- समुचित कार्यवाही के बारे में बतलाता है। इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकलने की शक्ति होगी।

अनुच्छेद 32 (3) :- इसके अंतर्गत संसद विधि द्वारा किसी न्यायालय को उसकी स्थानीय सीमाओं के भीतर उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड 2 के अधीन प्रयोग की जाने वाली किसी या सभी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सशक्त कर सकती है।

अनुच्छेद 32 (4) :- यह उपबन्धित करता है कि संविधान द्वारा अन्यथा उपबन्धित के सिवाय इस अनुच्छेद द्वारा गारण्टी किये गए अधिकारों को निलम्बित नहीँ किया जायेगा।

फर्टिलाइज़र कारपोरेशन, कामगार संघ  बनाम  भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 32 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता संविधान का 'आधारभूत ढांचा' है। अतः इसे अनुच्छेद 368 के अधीन संशोधन करके नष्ट नहीं किया जा सकता।

इसी प्रकार एल• चंद्र कुमार  बनाम  भारत संघ के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति को संविधान का आधरभूत ढांचा बताया था।

अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत कौन आवेदन दे सकता है

परम्परागत रूप से रिट के माध्यम से कार्यवाही संचालित करने का अधिकार उसी व्यक्ति को है जिसके मूल अधिकार का हनन हुआ है। वह व्यक्ति न्यायालय में यह साबित कर देता है कि उसके मूल अधिकार का हनन हुआ है तो यह न्यायालय के लिए बाध्यकारी है कि वह उसे समुचित उपचार प्रदान करे।

परन्तु अब उच्चतम न्यायालय ने अब भिन्न दृष्टिकोण अपनाते हुए अनुच्छेद 32 में Locus standi के आधार को काफी व्यापक बना दिया है।

अब अनुच्छेद 32 के अधीन कोई संस्था या लोकहित से प्रेरित कोई नागरिक या व्यक्तियों का वर्ग किसी ऐसे व्यक्ति के संवैधानिक या विधिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट फाइल कर सकता है। जो निर्धनता या किसी अन्य कारण से रिट फाइल करने में सक्षम नहीँ है।ऐसा व्यक्ति या वर्ग अनुच्छेद 226 के अंतर्गत भी आवेदन कर सकता है अर्थात लोकहित वाद का अब हमारे यहाँ प्रचलित है। जिसका उदहारण सेंटर फार पी• आई• एल•  बनाम  भारत संघ के वाद में केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में पी• जे• थॉमस की नियुक्ति का इस आधार पर विरोध किया गया कि उनके ऊपर भ्रष्टाचार निवारण की धारा 13 (1) व् धारा 120(b) भारतीय दण्ड संहिता के तहत मामला लम्बित था। न्यायालय ने उनकी नियुक्ति को अंस्थापित घोषित कर दिया तथा अभिखण्डित घोषित किया।

एस• पी• गुप्ता और अन्य  बनाम  राष्ट्रपति और अन्य, 1982 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायाधीशों के स्थानांतरण के मामले में अधिवक्ता संघ को अनुच्छेद 32 के अधीन रिट अधिकारिता के द्वारा उनके स्थानान्तरण को चुनौती देने का हक प्राप्त है। न्यायमूर्ति भगवती ने यहाँ तक कहा कि कोई व्यक्ति पत्र लिखकर भी उच्चतम न्यायालय से उपचार मांग सकता है।

उच्चतम न्यायालय उपचार देने से मना कर सकता है :-

पूर्व न्याय :- मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिये कोई व्यक्ति अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में उपचार हेतु आवेदन करता है तो वहाँ असफल होने के बाद उसी विषयवस्तु को पुनः अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय में नहीँ उठा सकता। उच्च न्यायालय में असफल होने के बाद कोई व्यक्ति अनुच्छेद 32 के अंतर्गत केवल अपील के माध्यम से ही उच्चतम न्यायालय जा सकता है।

दरयाव  बनाम  उत्तर प्रदेश राज्य में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जहाँ बंदी प्रत्यक्षीकरण का मामला है वहाँ पूर्व न्याय का सिद्धान्त लागू नहीं होगा।

            उपचारात्मक याचिका

रूपा अशोक हुर्रा  बनाम अशोक हुर्रा, AIR 2002 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अनुच्छेद 32 के अधीन अंतिम निर्णय को जिसको रिट द्वारा चुनौती नहीँ दी जा सकती है को भी वह गंभीर अन्याय के निवारण हेतु पुनर्विलोकन कर सकता है। यह ही उपचारात्मक याचिका है।

           अनुच्छेद 32 के अपवाद

अनुच्छेद 33 - संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि इस भाग में दिए गए अधिकारों में से किसी को सशस्त्र बलों अथवा सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने के लिए नियोजित बलों के सदस्यों के प्रयोग के सम्बन्ध में इस मात्रा तक निर्बन्धन लगाया जाये या निराकृत किया जाय कि वे अपने कर्तव्यों का उचित पालन कर सकें और उनमें अनुशासन बना रहे।

अनुच्छेद 34 - संसद को विधि द्वारा सेनाविधि के अधीन किये गए कार्यों को विधिमान्य बनाने की शक्ति प्राप्त है।

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