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Friday 5 January 2018

राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy) अनुच्छेद 36 - 51

राज्य के नीति निदेशक तत्वों के बारे में उपबन्ध भारतीय संविधान के भाग IV में किया गया है। राज्य में शासन को सही ढंग से चलाने के लिए राज्यों को इन्हें अपने कर्तव्य के रूप में निभाना पड़ता है। इनका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना और राज्य को मजबूत रूप में स्थापित करना है। राज्य के नीति निदेशक तत्वों को आयरलैंड के संविधान से लिया गया है। अनुच्छेद 36 से 51 में नीति निदेशक तत्वों का वर्णन है।

डॉ• भीमराव अम्बेडकर ने राज्य के नीति निदेशक तत्वों को "भारतीय संविधान की अनोखी विशेषतायें" कहा है। इसके उद्देश्यों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि नीति निदेशक तत्वों का उद्देश्य आर्थिक एवं राजनितिक लोकतंत्र स्थापित करना और सरकार की जबाबदेही जनता के प्रति तय करना, निरंकुशता समाप्त करना एवं समाजवादी समाज की स्थापना करना है।

अनुच्छेद 36 :- इसमें राज्य की परिभाषा वही बतायी गई है जो संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 में बताई गई है।

अनुच्छेद 37 :- इसके अनुसार राज्य के नीति निदेशक तत्व किसी न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीँ होंगे। इनमे दिए गए तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं तथा विधि बनातेे समय इन तत्वों पर अमल करना राज्य का कर्तव्य है।

अनुच्छेद 38 (1) :- इसमें राज्य को निदेश दिया गया है कि राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि करके ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिये प्रयत्न करेगा जिससे प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय सुनिश्चित हो।

अनुच्छेद 38 (2) :- इसके अनुसार राज्य आय की असमानता को कम करने के लिए प्रयास करेगा। राज्य केवल व्यक्तियों के बीच ही नहीं बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में व्यवसाय में लगे हुए लोगों के बीच प्रतिष्ठा, सुविधाओं और अवसरों की असमानता समाप्त करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद 39 :- राज्य अपनी नीति का इस प्रकार संचालन करेगा :-

a. स्त्री - पुरुष सभी नागरिकों को समान रूप जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार होगा।

b. समुदाय के भौतिक साधनों का स्वामित्व इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोत्तम रूप से साधन हो।

c. आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेंद्रण न हो।

d. स्त्री और पुरुष दोनों का समान कार्य के लिए समान वेतन हो।

e. पुरुष और स्त्री कर्मकारों के स्वास्थ्य औऱ शक्ति का तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को ऐसे रोजगारों में न जाना पड़े जो उनकी आयु और शक्ति के अनुकूल न हो।

f. बालकों को स्वतंत्र और गरिमामय वातावरण में स्वस्थ विकास के अवसर और सुविधाएं दी जायें और बालकों तथा अल्पवय व्यक्तियों की शोषण तथा आर्थिक और नैतिक परित्याग से रक्षा की जाये।

अनुच्छेद 39 (क) :- राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार कार्य करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाये। उपयुक्त विधान या योजना द्वारा या किसी अन्य रीति से निःशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा। 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अंत:स्थापित किया गया है।

मो• अहमद  बनाम  शाहबानो के वाद में सभी भारतीयों के लिए एक सी व्यवहार संहिता बनाने की बात कही है।

अनुच्छेद 40 :-राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करेगा। उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उनको स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिए आवश्यक हो।

अनुच्छेद 41 :- राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर काम पाने के, शिक्षा पाने के और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और निःशक्तता तथा लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त करने का प्रभावी उपबन्ध करेगा।

अनुच्छेद 42 :- राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबन्ध करेगा।

अनुच्छेद 36 से 51 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है। इस article में हमने अनुच्छेद 36 से 42 के बारे में अध्ययन किया है। अनुच्छेद 43 से 51 का अध्ययन next article में करेंगे।

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